Sunday 24 December 2017

Manusmriti

सन् 1927 में अम्बेडकर ने ''मनुस्मृति'' को जलाने की घोषणा तो कर दी थी किन्तु इसके लिए कोई स्थान नहीं मिल पा रहा था। तब एक सच्चे मुसलमान ने अपनी निजी जमीन उपलब्ध करायी और वही गड्ढा खोदकर, उसमे आग लगाकर अम्बेडकर ने एक एक पन्ना फाड़कर मनु-स्मृति को जला दिया था। इसके पीछे अम्बेडकर का तर्क था कि - हमें भारत से वर्ण-व्यवस्था को या जातिवाद को पूरी तरह ख़त्म करना है। वह दिन था 25 दिसम्बर और आज भी जातिवाद को ख़त्म करने के लिए बड़े बड़े भाषण देकर कुछ संगठन इस दिन को "मनुस्मृति-दहन-दिवस" घोषित करके, मनुस्मृति को जलाने का कार्यक्रम बनाते हैं।

अब थोडा गहराई से समझिये कि भारत में जातिवाद के लिए क्या केवल मनुस्मृति ही दोषी थी या अब है? कुछ समय पूर्व ही एक कोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा था कि - ''भारत ही ऐसा देश है जहाँ लोग स्वयं को पिछड़ा घोषित करने के लिए संघर्षरत हैं''। यानि इनका कथित उद्देश्य है वर्णव्यवस्था को ख़त्म करना और साथ ही स्वयं को निरंतर हीन और पिछड़ा मानना और उसे गाते रहना। तो वर्तमान में ये संगठन और लोग स्वयं ही जातिवाद के सबसे बड़े पोषक क्यों नहीं समझे जाने चाहिए? और इनकी घातकता से बचाने के लिए हिन्दुओ को किस किसके चित्र, किसकी लिखी पुस्तके जलाने पर विचार करना चाहिए?

अगर वर्ण-व्यवस्था को ही ये जातिवाद कहते हैं तो फिर उसकी प्रथमाभिव्यक्ति तो वेद करते हैं। वह तो उपनिषदों में भी है। गीता में भी है। महाभारत में भी है। रामायण में भी है। इनके प्रति उदारता क्यों? दरअसल इसका कारण है कि इन सबको एक साथ जलाने की बात करें तो कई शम्भुनाथ पैदा होकर इनको ही जला देंगे। इसलिए बड़ी व्यवस्थित और धीमी प्रक्रिया के तहत मनुस्मृति के विरुद्ध दुष्प्रचार किया गया। मनुस्मृति को जो ठीक से समझने के योग्य थे उनका मुख्य उद्देश्य राजनीति करना था और उसके लिए उनकी पूरी निष्ठा उसे समझने के प्रति नहीं बल्कि केवल और केवल जलाने के, उसे मिटाने के प्रति थी। यही वे लोग थे जिन्होंने सवर्णों द्वारा दलितों पर अत्याचारों की बड़ी-बड़ी मार्मिक कथाएं कल्पना करके लिखी और जो समझ नहीं सकते थे उन्हें भड़काया। इनका उपयोग किया। इसके पीछे एक स्पष्ट उद्देश्य था - हिन्दुओं को कमजोर करना और उन्हें तोडना, आपसी द्वेष फैलाना.. और हिन्दू-विरोधी-तत्वों को सहायता पहुंचाना।

आप स्वयं देखिये और पूछिये भी कि - ये मुसलमान और कम्युनिष्ट इस काम में सदैव तुम्हारे साथ क्यों होते है? आज भी मनुस्मृति के स्त्री-विरोधी होने की बात कहकर उसे जलाने का समर्थन करने वालो का साथ जो मुसलमान देते हैं क्या वे इसी तर्क के आधार पर कुरान या हदीसो को जलाना तो दूर उनकी किसी एक आयत या एक बात तक की भी निंदा करते हैं या कर सकते है? हिन्दुओ पर सबसे बड़ा प्रहार यही हो सकता है। इसीलिये कम्युनिष्टो का भी वर्ग जिसका काम भारत में केवल और केवल हिन्दू-धर्म का और इस राष्ट्र का विरोध एवं राष्ट्रविरोधी तत्वों एवं इस्लाम आदि हिन्दू-धर्म-विरोधी ताकतों का पोषण करना है। इन्होंने भी काफी संख्या में दलितों को भड़काकर उन्हें हिन्दू-धर्म-विरोधी बनाया। मतलब ये सब केवल एक दूसरे के लिए ऑक्सीजन की तरह काम करते है। उद्देश्य है हिन्दुओं को कमजोर करना।

मुसलमान और कम्युनिष्टों के अतिरिक्त अन्य भी स्वतंत्र स्वघोषित विचारक अपने स्वार्थ और धूर्तता के चलते इस बहते नाले में हाथ पैर मुंह सब धोते हैं। जैसे कि एक ड्रग्सखोर, घोर-अय्याश ओशो रजनिशाचर, जिसकी हवस से उसकी हवेली की कोई लेडीमोंक शायद ही बची होगी.. उसने कहा था कि - "शास्त्र तो हिन्दुओं और ब्राह्मणों के अहंकार की उदघोषणा है। इसलिए रावण को जलाना बंद करो। मनुस्मृति को प्रतिवर्ष जलाया जाना चाहिए"।  इस सनकी का उदाहरण काफी है इसे समझने के लिए जो पूर्व में कहा कि - "जो समझकर इस आग को भड़कने से रोकते, वे स्वयं अपने स्वार्थो के लिए, घी डाल रहे थे। रावण को हर वर्ष जलाएंगे तो इन्हें राम याद आयेंगे.. लगातार मनुस्मृति को जलाएंगे तो कभी तो राम के भी विरुद्ध हो जायेंगे। कृष्ण के विरुद्ध हो पायेंगे न।

लेकिन वास्तविकता यही है कि इनके ऐसे घृणित कुकृत्यों से कितने भी दलितों को ये बहका लें लेकिन इनका सामना अप्रत्यक्ष रूप से ईश्वरीय-आदेशों से है। हमेशा हमारे उन दलितों की ही संख्या सर्वाधिक रहेगी जो राम के हैं और मनुस्मृति के भी हैं। जय श्री राम और हर हर महादेव के उद्घोष करने वाला हमारा एक दलित, तुम्हारी उस अनपढ़ एवं मूर्ख भेड़ों की भीड़ पर भारी पड़ेगा।

ब्राह्मणवाद.. ब्राह्मणवाद चिल्लाते हैं। अगर ये इसे थोडा भी समझते तो समझ पाते कि यह कोई वाद मात्र नहीं है। यह एक प्रवाह है। जिसमे बहने से तुम हिन्दुओं को छोडो, अपने परिवारों के सभी सदस्यों तक को नहीं रोक सकते। भगवान शिव, श्री राम, कृष्ण सहित हमारे देवो के नाम को अगर मिटा सकते हो हिन्दुओ की स्मृति से, तो ही इसे नष्ट करने का स्वप्न देखो। जिसे तुम ब्राह्मणवाद कहते समझते हो। वह तो इसका आवरण मात्र है। तुम उससे ही विजय प्राप्त नहीं कर पा रहे तो इस आवरण के मध्य सुरक्षित जो शाश्वत अनश्वर प्रवाह है उस तक पहुंच भी कैसे पाओगे। नष्ट करने का तो स्वप्न भी कोई महामूर्ख व्यक्ति ही देख सकता है क्योंकि जिस आवरण से संघर्ष करने की तुम नौटंकी कर रहे हो बुद्ध भी उसी आवरण का एक भाग है.. लड़ते रहो स्वपरिभाषित.. स्वकल्पित नकली ब्राह्मणवाद से..।।जय श्री राम।।

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