Sunday 19 April 2020

पूरे देश मे स्वर्ण भारत परिवार की सेवानीति का परचम हर एक सदस्य कोविड 19 के खिलाफ एक योद्धा की तरह उतरा

स्वर्ण भारत परिवार के संरक्षक श्री संतोष मिश्र लगातार 15 दिनों से कर रहें हैं जरूरतमंदों को  भोजन वितरण

नई दिल्ली : स्वर्ण भारत परिवार ने रविवार को देश मे किये जा रहे राहत कार्यों पर प्रेस रिलीज जारी की और बताया कि पूरे देश मे स्वर्ण भारत परिवार किस तरह से जरूरतमंदों की मदद में अग्रणी भूमिका निभा रहा है दिल्ली में कंट्रोल रूम की कमान स्वयं ट्रस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीयूष पण्डित ने सम्हाल रखी है , हेल्थ से सम्बंधित कार्यक्रमो की ज़िमेदारी डॉक्टर सीमा मिश्रा देख रही हैं आर्थिक अनुदान समेत वालंटियर और प्रशाशन और सरकार से टाई अप करने की ज़िमेदारी  दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष अजिता सिंह बखूबी निभा रही है , जरूरत की सामाग्री उचित समय पर उपलब्ध कराने की जिमेद्दारी कॉर्डिनेटर अनुज शुक्ला के हाथों बखूबी निभाई जा रही सभी विंग सुरक्षित तरीके व प्रभावी ढंग से काम करें इसकी देख रेख हेतु वंदना शुक्ला अध्यक्षा दिशा फाउंडेशन लगातार अपनी सेवा दे रही हैं इसी तरह लखनऊ के प्रमुख समाज सेवी श्री संतोष मिश्रा पूरे परिवार सहित भोजन लेकर सुबह शाम पार्क में बैठ जाते हैं और जरूरतमंदों को बड़े ही स्नेह से भोजन करवा के पूर्ण जानकारी देकर ही विदा करते हैं, इस मौके पर स्वर्ण भारत परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष पीयूष पण्डित जी  ने दिल्ली से कहा कि संतोष जी के विचार और सेवानीति से पूरे स्वर्ण भारत को प्रेरणा मिलती है। सेवानीति कि *लखनऊ* में स्वर्ण भारत के विकास में श्रीमंत जी का मुख्य योगदान हैं, इसके अलावा मलिन बस्तियों में भी प्रशासन की अनुमति से दो पुलिस के जवान लेकर क्षेत्र के विभिन्न स्थानों पर स्वर्ण भारत परिवार संस्था ने पका हुआ भोजन तथा कच्चा राशन भी वितरित किया और साथ में जिन लोगों को आर्थिक रूप से भी मदद की जरूरत पड़ी तो उसमें भी स्वर्ण भारत परिवार ने अपना  पूरा योगदान दिया। स्वर्ण भारत इसी तरह से सभी जिलों में राज्यों में अपने वॉलिंटियर्स द्वारा किए गए कार्य की सराहना करता है।दूसरी तरफ स्वर्ण भारत परिवार की सदस्य गीता पांडेय ने मध्यप्रदेश में कमान सम्हाली हैं वो स्वयं पूरे मुहल्ले को सेनिटाइजर से प्रतिदिन सिनीटाइज कर रही हैं और प्रतिदिन 40 जरूरदमन्दों को भोजन करवा रही हैं, स्वर्ण भारत की स्प्रिचुल विंग की प्रदेश अध्यक्ष सनमप्रीत कौर ने इंदौर में हर दिन स्टूडेंट्स को राहत सामग्री पहुँचाने के कार्य मे लगी हैं, स्वर्ण भारत परिवार अब तक *16 राज्यों* में अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुका है और 1100 परिवार को डायरेक्ट राहत सामाग्री भेजने का कार्य कर चुका है पूरे लॉक डाउन तक एक लाख परिवार तक राहत सामग्री व कैश ट्रांसफर की सेवा प्रदान करने में लगा है । जरूरी जानकारी देते हुए *दिल्ली* प्रदेश अध्यक्ष अजिता सिंह ने कहा कोटा के स्टूडेंट्स का मुद्दा पूरे देश मे स्वर्ण भारत परिवार ने उठाया था जिसके पश्चात उत्तरप्रदेश सरकार ने मांग को मानते हुए 250 बसों से उत्तरप्रदेश के सभी छात्रों को विशेष व्यवस्था से उनके जिले तक ले जाया गया, अन्य सभी सरकारों से लगातार बात हो रही अन्य प्रदेशों से जल्द ही स्टूडेंट्स को उनके घर छोड़ा जाएगा और इस संस्था से जितने भी लोग जुड़े हुए हैं और वह इस समय  जब देश एक बहुत बड़ी आपदा से जूझ रहा है ऐसे समय में अपनी सेवा नीति का परिचय दे रहे हैं।

 प्रदेश अध्यक्षो व जिलाध्यक्षों ने सम्हाली सेवानीति की कमान  मीनाक्षी शुक्ला जिला बैतूल से निशा रावल छत्तीसगढ से जयपुर से पूनम जी बिहार से मुकेश  झा के नेतृत्व झारखंड से स्वप्निल सिंहके नेतृत्व  *उत्तरप्रदेश* से आलोक तिवारी नेता के नेतृत्व में *राजस्थान* में कृष्णकांत जी के नेतृत्व में *हिमाचल* प्रदेश में मंजू अग्रवाल जी के नेतृत्व में *कश्मीर* में सोहेल बेग के नेतृत्व में सभी जिलों के अध्यक्षो से मिलकर सेवानीति पर कार्य युध्द स्तर पर जारी है स्वर्ण भारत परिवार के चेयरमैन पीयूष पंडित जी दिल से आभार व्यक्त करते हैं और उम्मीद करते हैं स्वर्ण भारत परिवार इसी तरह से जब भी कभी कहीं किसी को किसी भी तरह की सुविधा की जरूरत हो तो वह हमारे दिए गए नंबर पर कांटेक्ट करें स्वर्ण भारत परिवार उनका दिल से स्वागत करता है, और उनकी सेवा के लिए तत्पर है क्योंकि सेवा नीति ही हमारा मुख्य  उद्देश्य इस मौके पर सुरेश उपाध्याय अविनाश मिश्र व सुरेश पांडेय जी ने सेवानीति का परिचय देते हुए भोजन वितरण में सहयोग किया

अंतरिक्ष की दुनिया मे भारत की धमक आज के दिन से शुरू हुई आर्यभट्ट उपग्रह की सफल प्रयोग से : पीयूष पण्डित

अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत को आज एक महाशक्ति के रूप में देखा जाता है और बहुत से देश कम लागत में अपने उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए भारत पर निर्भर करते हैं। देश के अंतरिक्ष के इस सफर में 19 अप्रैल का खास महत्व है। दरअसल यही वह दिन है जब 1975 को भारत रूस की मदद से अपना पहला उपग्रह #आर्यभट्ट लॉन्च कर अंतरिक्ष युग में दाखिल हुआ। यह भारत का पहला वैज्ञानिक उपग्रह था। आइए जानें इसके बारे में खास बातें:
भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट का नाम मशहूर खगोलशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।
आर्यभट्ट ने पाई का सही मान 3.1416 निकाला था। आर्यभट्ट  उपग्रह  लॉन्च होने के 17 साल के बाद 11 फरवरी 1992 को पृथ्वी पर वापस आया।

रिजर्व बैंक को ने इस ऐतिहासिक दिन को सेविब्रेट करने के लिए 1976 और 1997 के 2 रुपए के नोट पर सैटेलाइट की तस्वीर भी लगाई थी।

360 किलोग्राम वजनी आर्यभट्ट को सोवियत संघ के इंटर कॉसमॉस रॉकेट की मदद से अंतरिक्ष में भेजा गया था। 

आर्यभट्ट उपग्रह का मुख्य उद्देश्य एक्स रे, खगोल विद्या, वायुविज्ञान और सौर भौतिकी से जुड़े प्रयोग करना था। 

भारतीय सरकार को इस उपग्रह का नाम आर्यभट्ट रखने हेतु स्वर्ण भारत धन्यवाद देता है ।

वैज्ञानिकों में चार्ल्स डार्विन बचपन से मेरे पसंदीदा वैज्ञानिकों में से एक थे उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज बेहद ही उपयोगी: पीयूष पण्डित

चार्ल्स डार्विन का जन्म 12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के शोर्पशायर श्रेव्स्बुरी में हुआ था। उनके पिता रोबर्ट डार्विन चिकित्सक थे। उनका परिवार खुले विचारों वाला था। 

बचपन से ही चार्ल्स डार्विन प्रकृति और पशु-पक्षियों के व्यवहार के अवलोकन, बीटल्स की दुर्लभ प्रजातियां खोजने, फूल-पत्तियों के नमूने इकट्ठा करने में अपना समय गुजारा करते थे। उनका मन स्कूल में पढ़ाई जाने वाली ग्रीक, लैटिन एवं बीजगणित में नहीं लगता था। पिता रोबर्ट डार्विन बेटे चार्ल्स डार्विन को भी अपनी ही तरह चिकित्सा के क्षेत्र में भेजना चाहते थे, इसके लिए उन्होंने चार्ल्स का दाखिला मेडिकल में कराया किन्तु वहां भी चार्ल्स डार्विन का मन नहीं लगा और उन्होंने बीच में ही मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी। वनस्पति शास्त्र में चार्ल्स  डार्विन की रूचि को देखते हुए बाद में उनका दाखिला कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में कराया गया जहां से 1831 में चार्ल्स डार्विन ने डिग्री प्राप्त की 

स्वर्ण भारत परिवार आज यानी 19 अप्रैल को डार्विन की पुण्यतिथि पर उनको श्रद्धांजलि देता है

Tuesday 14 April 2020

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर पर किसी एक पार्टी य जाति का एकाधिकार नही बल्कि वो सभी वर्ग के युवाओ के प्रेरणा श्रोत : पीयूष पण्डित




नई दिल्ली संवाददाता : 20वीं शताब्दी के श्रेष्ठ चिन्तक, ओजस्वी लेखक, तथा यशस्वी वक्ता एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम कानून मंत्री डॉ. भीमराव आंबेडकर भारतीय संविधान के प्रमुख निर्माणकर्ता हैं। विधि विशेषज्ञ, अथक परिश्रमी एवं उत्कृष्ट कौशल के धनी व उदारवादी, परन्तु सुदृण व्यक्ति के रूप में डॉ. आंबेडकर ने संविधान के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। डॉ. आंबेडकर को भारतीय संविधान का जनक भी माना जाता है।उनके विचारों में एक भारत श्रेष्ठ भारत की झलक व समानता के अधिकार की चर्चा है किंतु राजनीतिक पार्टियों ने इसे एक जाति से जोड़ना शुरू किया जो दुर्भाग्य पूर्ण है।

कोरोना वायरस संक्रमण को देखते हुए देशभर में लॉकडाउन है। किसी सार्वजनिक कार्यक्रम की अनुमति नहीं है। ऐसे में बहुत से त्‍योहारों का रंग फीका पड़ गया है। इस दौरान महापुरुषों की याद में कार्यक्रम भी नहीं हो पा रहे। 14 अप्रैल को भारत की संविधान सभा के अध्‍यक्ष डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती है। हर साल बड़े आयोजन होते थे मगर इस बार सब चारदीवारी के अंदर होगा

छुआ-छूत का प्रभाव जब सारे देश में फैला हुआ था, उसी दौरान 14 अप्रैल, 1891 को बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर का जन्म हुआ था। बचपन से ही बाबा साहेब ने छुआ-छूत की पीङा महसूस की थी। जाति के कारण उन्हें संस्कृत भाषा पढने से वंचित रहना पड़ा था। कहते हैं, जहाँ चाह है वहाँ राह है। प्रगतिशील विचारक एवं पूर्णरूप से मानवतावादी बङौदा के महाराज सयाजी गायकवाङ ने भीमराव जी को उच्च शिक्षा हेतु तीन साल तक छात्रवृत्ती प्रदान की, किन्तु उनकी शर्त थी की अमेरिका से वापस आने पर दस वर्ष तक बङौदा राज्य की सेवा करनी होगी। भीमराव ने कोलम्बिया विश्वविद्यालय से पहले एम. ए. तथा बाद में पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की ।
उनके शोध का विषय “भारत का राष्ट्रीय लाभ” था। इस शोध के कारण उनकी बहुत प्रशंसा हुई। उनकी छात्रवृत्ति एक वर्ष के लिये और बढा दी गई। चार वर्ष पूर्ण होने पर जब भारत वापस आये तो बङौदा में उन्हे उच्च पद दिया गया किन्तु कुछ सामाजिक विडंबना की वजह से एवं आवासिय समस्या के कारण उन्हें नौकरी छोङकर बम्बई जाना पङा। बम्बई में सीडेनहम कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर नियुक्त हुए किन्तु कुछ संकीर्ण विचारधारा के कारण वहाँ भी परेशानियों का सामना करना पङा। इन सबके बावजूद आत्मबल के धनी भीमराव आगे बढते रहे। उनका दृण विश्वास था कि मन के हारे, हार है, मन के जीते जीत। 1919 में वे पुनः लंदन चले गये। अपने अथक परिश्रम से एम.एस.सी., डी.एस.सी. तथा बैरिस्ट्री की डिग्री प्राप्त कर भारत लौटे।
1923 में बम्बई उच्च न्यायालय में वकालत शुरु की अनेक कठनाईयों के बावजूद अपने कार्य में निरंतर आगे बढते रहे। एक मुकदमे में उन्होने अपने ठोस तर्कों से अभियुक्त को फांसी की सजा से मुक्त करा दिया था। उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने निचली अदालत के फैसले को रद्द कर दिया। इसके पश्चात बाबा साहेब की प्रसिद्धी में चार चाँद लग गया।

डॉ. आंबेडकर की लोकतंत्र में गहरी आस्था थी। वह इसे मानव की एक पद्धति (Way of Life) मानते थे। उनकी दृष्टी में राज्य एक मानव निर्मित संस्था है। इसका सबसे बङा कार्य “समाज की आन्तरिक अव्यवस्था और बाह्य अतिक्रमण से रक्षा करना है।“ परन्तु वे राज्य को निरपेक्ष शक्ति नही मानते थे। उनके अनुसार- “किसी भी राज्य ने एक ऐसे अकेले समाज का रूप धारण नहीं किया जिसमें सब कुछ आ जाय या राज्य ही प्रत्येक विचार एवं क्रिया का स्रोत हो।“
अनेक कष्टों को सहन करते हुए, अपने कठिन संर्घष और कठोर परिश्रम से उन्होंने प्रगति की ऊंचाइयों को स्पर्श किया था। अपने गुणों के कारण ही संविधान रचना में, संविधान सभा द्वारा गठित सभी समितियों में 29 अगस्त, 1947 को “प्रारूप-समिति” जो कि सर्वाधिक महत्वपूर्ण समिति थी, उसके अध्यक्ष पद के लिये बाबा साहेब को चुना गया। प्रारूप समिति के अध्यक्ष के रूप में डॉ. आंबेडकर ने महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया। संविधान सभा में सदस्यों द्वारा उठायी गयी आपत्तियों, शंकाओं एवं जिज्ञासाओं का निराकरण उनके द्वारा बङी ही कुशलता से किया गया। उनके व्यक्तित्व और चिन्तन का संविधान के स्वरूप पर गहरा प्रभाव पङा। उनके प्रभाव के कारण ही संविधान में समाज के पद-दलित वर्गों, अनुसूचित जातियों और जनजातियों के उत्थान के लिये विभिन्न संवैधानिक व्यवस्थाओं और प्रावधानों का निरुपण किया ; परिणाम स्वरूप भारतीय संविधान सामाजिक न्याय का एक महान दस्तावेज बन गया।

1948 में बाबा साहेब मधुमेह से पीड़ित हो गए । जून से अक्टूबर 1954 तक वो बहुत बीमार रहे इस दौरान वो नैदानिक अवसाद और कमजोर होती दृष्टि से भी ग्रस्त रहे । अपनी अंतिम पांडुलिपि बुद्ध और उनके धम्म को पूरा करने के तीन दिन के बाद 6 दिसंबर 1956 को अम्बेडकर इह लोक त्यागकर परलोक सिधार गये। 7 दिसंबर को बौद्ध शैली के अनुसार अंतिम संस्कार किया गया जिसमें सैकड़ों हजारों समर्थकों, कार्यकर्ताओं और प्रशंसकों ने भाग लिया। भारत रत्न से अलंकृत डॉ. भीमराव अम्बेडकर का अथक योगदान कभी भुलाया नहीं जा सकता , धन्य है वो भारत भूमि जिसने ऐसे महान सपूत को जन्म दिया'
ये सारी जानकारी कंपनी के मासिक (ऑनलाइन) बैठक और बाबा साहब के जन्मदिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित ऑनलाइन सेमिनार में पीयूष ग्रुप ऑफ़ कंपनीज़ के चेयरमैन  व स्वर्ण भारत परिवार के अध्यक्ष पीयूष पण्डित ने दी और युवाओ से अनुरोध किया की बाबा साहब को आदर्श के रूप में जीवन में उतारें

Monday 13 April 2020

जलियांवाला बाग हत्या कांड के बाद चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु ,4 जैसे हजारों युवाओं ने देशभर में मातृभूमि को मुक्त कराने का संकल्प दोहराया : पीयूष पण्डित



नई दिल्ली : जलियांवाला बाग के एक सौ एक साल पूरे हो गए। स्वर्ण भारत परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने आज कांड को याद कर इस कांड की आलोचना की। इसे भारतीय इतिहास पर काला धब्बा बताया और अंग्रेजों से मांग की कि  भारत से माफी मांगनी चाहिए । 13 अप्रैल 1919 को पंजाब के अमृतसर स्थित जलियांवाला बाग में बैसाखी का मेला लगा था। दूसरी तरफ ब्रितानिया हुकूमत का विरोध करने के लिए क्रांतिकारियों ने रॉयल एक्ट के विरोध में वहां जनसभा बुलाई थी। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षता में बने रॉलेट एक्ट जिसमें प्रेस पर प्रतिबंध और नेताओं की जब चाहे बिना कारण बताये गिरफ़्तारी जैसे कड़े क्रूर कानून थे। इस एक्ट का विरोध पूरे देश में हो रहा था। अंग्रेजों को यह बात रास नहीं आ रही थी। वैसे भी यह उनके अहंकार को चुनौती थी। उनकी सत्ता को चुनौती थी। जलियांवाला बाग में जब सभा चल रही थी उस समय जनरल डायर ने 90 सैनिकों के साथ बाग को चारों ओर से घेर लिया और निहत्थे लोगों पर चौतरफा गोलियां बरसानी आरंभ कर दी। शासकीय आंकड़े बताते हैं कि जनरल डायर के इस अप्रत्याशित हमले में 484 लोग मारे गये थे जिसमें 50 मुस्लिम थे। 41 नाबालिग बच्चों के साथ अनेक दुधमुंहे बच्चों ने भी शहादत दी थी। सैकड़ों लोग घायल हो गए थे। गैर सरकारी आंकड़े पर गौर करें तो हजार लोग शहीद हुए और दो हजार लोग घायल हुए थे। बाग के अंदर कुएं से उस समय दो सौ शव निकाले गये थे। कुछ दिनों बाद जब कुएं की सफाई हो रही थी तो कई नरकंकाल, नर मुंड मिले थे। कुल मिलाकर आजादी के आंदोलन का यह सबसे क्रूरतम नरसंहार था। उसकी भारत समेत विश्वभर में प्रतिक्रया हुई थी। श्रीमती एनी बेसेन्ट ने उसकी तुलना बेल्जियम में जर्मनों द्वारा किये गये अत्याचार से की तो रूसी निकोलाई तिखोनोवा ने 1905 में हुए पिट्सबर्ग हत्याकांड से किया। इस घटना से आहत गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर ने सर की उपाधि लौटा दी थी। सर शंकरन ने उनकी कार्यकारणी से इस्तीफा दे दिया था। आगे चल यह कांड अंग्रेजी सत्ता के लिए काल बन गया। गरम दल के नौजवानों की आंखों में खून उतर आया। चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु ,सुखदेव ,भगत सिंह जैसे हजारों युवाओं ने देशभर में मातृभूमि को मुक्त कराने का संकल्प दोहराया। 1857 की चिनगारी पुनः भड़क उठी। इस क्रूर जघन्य हत्याकांड को अपनी आंखों से देखने वाले 16 वर्षीय बालक क्रांतिकारी उधम सिंह कसम खाता है और 21 वर्ष बाद 13 मार्च 1940 को इस घटना के दोषी माइकल ओ डायर को लंदन में जाकर गोली मारकर संकल्प पूरा करता है। रॉलेट एक्ट क्रांतिकारियों के बीच खूब पढ़ी गयी। बाद में अंग्रेजी सत्ता ने इस पर प्रतिबन्ध लगाया। वर्षों बाद भी जब देश का युवा, नागरिक जब जलियांवाला बाग में जाता है तो उस मिट्टी से तिलक लगा कर देश की सुरक्षा का संकल्प लेता है। इस प्रेरणा भूमि से वन्देमातरम के नारे गूंजते हैं।लेकिन  दूसरी तरफ आज भी ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ की आवाज लगाने वाली ताकतें देश में सक्रिय हैं। कश्मीर से लेकर छत्तीसगढ़ के सुदूर जंगलों में जवान से लेकर नेता, जनता सबकी शहादत हो रही है। तथाकथित मानवाधिकारवादी, कलमकार, बुद्धिजीवी, राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को बौद्धिक, आर्थिक, न्यायिक सहयोग समर्थन विदेशी शह पर कर रहे हैं। आखिर अलगाववादी, आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देकर देश से लोकतंत्र खत्म कर, किस तरह के समाज की वे संकल्पना कर रहे हैं? भारत के टुकड़े क्यों करना चाहते हैं? आतंकवाद का समर्थन किस मानवता के पक्ष में है? आज अनेक प्रश्न हैं जिनका उत्तर राष्ट्रीय संकल्प ही होगा। लोकतंत्र ही सबके साथ ,सबके विकास की गारंटी है। जिसको मजबूत करना ही शहीदों के सपनों का भारत बनाना होगा, यही जलियांवाला बाग के शहीदों को श्रद्धाजंलि होगी।
इस देश को आजादी बड़ी मुश्किल से मिली थी। सवाल यह है कि हम उस आजादी का महत्व समझ भी पाए हैं? गुलामी के दिनों में हम पर अंग्रेजों का हमला होता था और आज हम पर हमारे अपने ही हमलावर हो रहे हैं। जब यह देश जलियांवाला कांड की 101 साल मना रहा है,। उस समय भी हमने अंग्रेजों और देश के बीच से देश को चुना था। राजीनीति  में भी हमें देश के व्यापक हितों को चुनने हैं। यह देश गुलाम ही इसलिए हुआ था कि इस देश में कुछ स्वार्थी लोगों का वर्चस्व हो गया था। आज एक बार पुनश्च उसी तरह के हालात हैं। ऐसे में हमें सोचना है कि हम देश को कहां ले जाना पसंद करेंगे। आतंकवाद की आग में, अलगाववाद की आग में, भाषा और प्रांत की लड़ाई में, जाति और धर्म की लड़ाई में देश का विकास अवरुद्ध हो रहा है। जलियांवाला बाग नरसंहार हमें निरंतर सोचने और देश के लिए कुछ नया करने की प्रेरणा देता है। काश, हम इस प्रेरणा को जीवन का आदर्श बना पाते। राष्ट्रीय कार्यालय की तरफ से आज शोक सभा व सभी शहीदों को  श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु सभी प्रदेशों में अध्यक्षो द्वारा घर मे ही शोक सभाएं प्रस्तावित की गई , कोरोना की वजह से प्रस्तावित अप्रैल 30 तक निरस्त हैं इसकी जानकारी स्वर्ण भारत  मीडिया सेल द्वारा दी गई ।

Sunday 12 April 2020

कोरोना के खिलाफ जंग में उतरा स्वर्ण भारत परिवार, निभा रहा है अहम भूमिका

नई दिल्ली: कोरोना से बचाव को लेकर सरकार और प्रशासन के साथ स्वयंसेवी संस्था व राजनीतिक दल भी लगातार पहल कर रहे हैं। स्वयंसेवी संस्था द्वारा जरुरतमंदों के बीच राहत सामग्री पहुंचाई जा रही है। जबकि गांव मोहल्लों को सैनेटाइज किया जा रहा है। इस कड़ी में सबसे बड़ा नाम जो उभर के आया है वो युवाओं की पहली पसंद कहे जाने वाले पीयूष पण्डित का ट्रस्ट स्वर्ण भारत परिवार है, जो पूरे देश मे हज़ारो वालंटियर के साथ हर प्रदेश में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा रहा है देश में कोरोना का संक्रमण बढ़ रहा है. कोरोना के एक्टिव पॉजिटिव मामलों की संख्या नौ हजार पर पहुंच गई है. अब तक भारत में कोरोना की वजह से लगभग तीन सौ लोगों की मौत हो चुकी है.
कोरोना से संक्रमित 643 लोगों को इलाज के बाद घर भेज दिया गया है. देश के कई इलाके में कोरोना हॉट स्पॉट को चिह्नित किया गया है और उन्हें सील कर दिया गया है.
14 अप्रैल 2020 तक सभी विदेशी उड़ानों पर रोक लगाई जा चुकी है. अगर कोई व्यक्ति वाजिब कारण के बिना सड़कों पर टहलता पाया गया तो उसे जेल भेजा जा सकता है.
कोरोना संक्रमण से अब तक मौतों में बुजुर्गों की संख्या अधिक है. कोरोना वायरस अब तक दुनिया के 200 देशों में फैल चुका है. अमेरिका और इटली, स्पेन सहित कई यूरोपीय देशों में स्थिति बेकाबू हो गई है, कोरोना महामारी से जहां पूरी दुनिया डरी हुई है और करोड़ों लोग घर के अंदर कैद होने को मजबूर हैं, वहीं साल 2013 में रसायन शास्त्र का नोबल पुरस्कार जीतने वाले माइकल लेविट ने उम्मीद जगाई है. उनका कहना है कि जल्द कोरोना का खतरा कम हो जाएगा.

स्वर्ण भारत परिवार अपनी उपयोगिता कोरोना महामारी में में कुछ इस प्रकार साबित कर रहा है *हर दिन देश भर में पांच हज़ार लोगो को भोजन करवाना*
देश का पहला ट्रस्ट जो डायरेक्ट कैश ट्रांसफर की सुविधा दे रहा है

अब तक सौ से अधिक लोगो को डायरेक्ट कैश की सुविधा उपलब्ध कराई गई
हर दिन ऑनलाइन समस्यओं का निराकरण व जागरूकता अभियान

कोविड 19 कंट्रोल रूम की स्थापना जो संमस्यों को सीधे सरकार तक पहुँचाने का कार्य करता है

स्वर्ण भारत परिवार के राष्ट्रीय प्रवक्ता संतोष पांडेय ने कहा कि कुछ इलाके ऐसे हैं जहां ट्रस्ट अनाज पानी व घर की घरेलू समान नही पहुँचा पा रहा था इस पर कोर कमेटी की बैठक हुई जिसमें दिल्ली प्रदेश की कमान सम्हाल रही अजिता सिंह ने सुझाव दिया कि हमे डिजिटल इंडिया के प्रमोशन के तहत डायरेक्ट एकाउंट में राशन पानी हेतु पैसे भेजने चाहिए , इस सुझाव पर उत्तरप्रदेश महिला अध्यक्ष सीमा मिश्र जी ने विचार का समर्थन किया और कार्य योजना बनाने हेतु लीगल टीम तैयार की गई फिर ट्रायल बेस पर करीब दस लोगो को हज़ार से दो हज़ार प्रति व्यक्ति ट्रांसफर किया गया इस योजना की सफलता के बाद इसे राष्ट्रीय स्तर पर लांच किया गया । बता दें स्वर्ण भारत सीमित संसाधनों के बावजूद अपने रिसर्च व नवीनतम कार्य प्रणाली की वजह से सुर्खियों में बना रहता है और यह पहला ट्रस्ट है जो किरायेदारों,स्टूडेंट्स,कॉलसेंटर कर्मी, युवा बेरोजगारों, सहित कम आय वाले सभी वर्गों की समस्याओं के समाधान में लगा है ।

वहीं स्वर्ण भारत परिवार के राष्ट्रीय अध्यक्ष का कहना है स्वर्ण भारत एक परिवार है सभी कार्य आपसी सहयोग से ही सम्भव है हम सभी प्रदेशों की सरकार के साथ कदम मिला कर चल रहे हैं , शाशन प्रशाशन पर मजबूत गठजोड़ करके ही आम जनमानस को हम इस महामारी से बचा सकते हैं । केंद्र सरकार के साथ सभी राज्यों की सरकारों को एक साथ कार्य करते हुए देखना बहुत ही सुखद है उसी तरह स्वर्ण भारत परिवार सौ से अधिक संस्थाओं के साथ राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रमो का ममज़बूत प्रबंधन कर रहा है ।

एक्टिव वालंटियर सुविधा जिससे आप अपनी भागीदारी निभा सकते हैं

1. फ़ील्ड कार्य/खाने का वितरण करना।
2. सोशल मीडिया के माध्यम से ज़रूरी सूचनाओं का प्रचार व अफ़वाहों को रोकना।
3. डोनेशन कार्य (धन/दवाइयां/खाना)
4. पशु व जानवरों की सुरक्षा व देखभाल
5. शिक्षा व स्वास्थ्य कैंप
6. घर बैठे ऑनलाइन शेशन
समस्त जानकारी कोऑर्डिनेटर स्वर्ण भारत परिवार द्वारा मीडिया को प्रस्तुत की गई और आम जनमानस से अपील की स्वर्ण भारत परिवार की सेवानीति से जुड़ कर राष्ट्र को मजबूत करने का करें प्रयास

Monday 6 April 2020

भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत बताए, जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं : पीयूष पण्डित

महावीर स्वामी का जन्म 599 ईसवी पूर्व बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज सिद्धार्थ और महारानी त्रिशला के घर तीर्थंकर महावीर का जन्म हुआ। उनके बचपन का नाम वर्धमान था। महावीर स्वामी के दिखाए मार्ग पर चलने वाले जैन कहलाते हैं, जैन का तात्पर्य ही है जिन के अनुयायी। भगवान महावीर ने पांच सिद्धांत बताए, जो समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति की ओर ले जाते हैं। यह सिद्धांत हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह। यहां पढ़ें महावीर स्वामी के कुछ विचार:

हर एक जीवित प्राणी के प्रति दया रखो. घृणा से विनाश होता है

सभी मनुष्य अपने स्वयं के दोष की वजह से दुखी होते हैं , और वे खुद अपनी गलती सुधार कर प्रसन्न हो सकते हैं।

 आत्मा अकेले आती है अकेले चली जाती है , न कोई उसका साथ देता है न कोई उसका मित्र बनता है।
जिस प्रकार धागे से बंधी (ससुत्र) सुई खो जाने से सुरक्षित है, उसी प्रकार स्व-अध्ययन (ससुत्र) में लगा व्यक्ति खो नहीं सकता है।

जो सत्य जानने में मदद कर सके, चंचल मन को नियंत्रित कर सके, और आत्मा को शुद्ध कर सके उसे ज्ञान कहते हैं।
*इस शुभ अवसर पर स्वर्ण भारत परिवार ने जैन धर्म के अनुयायियों को राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका के निर्वाहन में योगदान देने को कहा* ।

Thursday 2 April 2020

बच्चो को पुस्तक गिफ्ट करें व उन्हें डलवाएं पढ़ने की आदत : पीयूष पण्डित

बच्चो को पुस्तक गिफ्ट करें व उन्हें डलवाएं पढ़ने की आदत : पीयूष पण्डित 

नई दिल्‍ली: किताबों में पूरी दुनिया का ज्ञान छुपा होता है, लेकिन वर्तमान समय में किसी के पास किताब पढ़ने का टाइम नहीं है. हर कोई स्मार्टफोन में बिजी नजर आता है और अ ब यही आदत बच्चों में भी आने लगी है. बच्चे किताब छोड़ स्मार्टफोन पर ज्यादा समय बिताते हैं. कहा जाता है कि किताबें हमेशा जिंदा रहती हैं और किताबों के अक्षर ज्ञान का प्रतीक हैं. किताबों से प्रेरणा लेकर इंसान किसी भी हालात का सामना कर सकता है. इसलिए बच्चों को किताबें पढ़ने की आदत डालें.

2 अप्रैल को इंटरनेशनल चिल्‍ड्रेन्‍स बुक डे के मौके पर हम बच्‍चों के लिए अलग-अलग विद्वानों द्वारा कही गईं ज्ञान की बातें बता रहे हैं जो बच्‍चों के लिए प्रेरणा बन सकती हैं.
स्वामी विवेकानन्द : एक विचार लें. उस विचार को अपनी जिंदगी बना लें. उसके बारे में सोचिये, उसके सपने देखिये, उस विचार को जिए. आपका मन, आपकी मांसपेशिया, आपके शरीर का हर एक अंग, सभी उस विचार से भरपूर हो. और दुसरे सभी विचारों को छोड़ दे. यही सफ़लता का तरीका हैं.

अब्राहम लिंकन : हमेशा याद रखिये कि सफलता के लिए किया गया आपका अपना संकल्प किसी भी और संकल्प से ज्यादा महत्त्व रखता है.

डेल कार्नेगी : असफलता से सफलता का सृजन कीजिए. निराशा और असफलता, सफलता के दो निश्चित आधार स्तम्भ हैं.

अल्बर्ट आइंस्टीन : सफल आदमी बनने के बजाय एक महत्वपूर्ण आदमी बनने की सोचिये

नेपोलियन हिल : बोलने से पहले आपको दो बार सोचना चाहिए. क्योंकि आपके शब्द, किसी के मन में सफलता या असफलता के बीज बों सकते हैं.

गौत्तम बुद्ध : जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते.

अब्दुल कलाम : महान सपने देखने वालों के महान सपने हमेशा पूरे होते हैं.

चाणक्य : कोई काम शुरू करने से पहले, स्वयम से तीन प्रश्न कीजिए – मैं ये क्यों कर रहा हूं, इसके परिणाम क्या हो सकते हैं और क्या मैं सफल होऊंगा. और जब गहरई से सोचने पर इन प्रश्नों के संतोषजनक उत्तर मिल जायें, तभी आगे बढें.

महात्मा गांधी : खुद वो बदलाव बनिए जो दुनिया में आप देखना चाहते हैं.

रबिन्द्रनाथ टैगोर : हर एक कठिनाई जिससे आप मुंह मोड़ लेते हैं,एक भूत बन कर आपकी नीद में बाधा डालेगी.

Swarna Bharat Parivar started Awareness Campaigns About World Autism Awareness Day, swarna Bharat Parivaar's Chairman Peeyush Pandit organized online talk show due to Covid 19 Lockdown

New Delhi :  World Autism Day is an internationally recognized day which is observed on April 2, every year. The member states of the United Nations are encouraged to spread awareness among the people about the Autism Spectrum Disorder. The general assembly resolution about the World Autism Day was passed in the council in November 2007 and it was adopted in December 2007. The very first World Autism Day was observed in the year 2008 on April 2. 

World Autism Awareness Day 2020 Theme
For the past few years, World Autism Day focuses on a specific theme which is determined by the United Nations. This year the World Autism Awareness Day 2020 Theme is 'The Transition to Adulthood'. United Nation believes that becoming an adult means being educated and having a certain amount of knowledge in social, economical and political life in one's community. However, the transition to
 adulthood is an important challenge for the people with autism because of the lack of opportunities and the support for this phase in their life.