प्राचीन काल में सभी वैदिक आर्य हिन्दू संसार के श्रेष्ठ साहसी योद्धा थे. वीरता और साहस उनका स्वभाविक गुण था. यह स्वभाविक गुण उनको अपने श्रेष्ठ वैदिक धर्म से मिला था. ऋग्वेद और श्रीमद्भगवतगीता से प्रेरणा व आदेश प्राप्त कर, वह कर्म से अपना भाग्य बनाते थे. उनमें जातिप्रथा नही थी. वर्ण व्यवस्था कर्म के अनुसार थी, कर्म के अनुसार वर्ण बदला भी जा सकता था. लेकिन उनमें छुआछूत नही थी. केवल मन और शरीर की शुद्धता पर ध्यान दिया जाता था.
परन्तु जब मुगल बादशाहों नें हिन्दुस्तान की धरती पर कब्जा जमाया तो मुसलमान धर्म न स्वीकार करने वालों को, बादशाह रोज-रोज अपमानित करने के लिये उनसे अपना, अपनी हजारों बेगमों, दरबारियों, सेनापतियों और अन्य प्रभावशाली रिश्तेदारों के घर का मैला उठवाना शुरु कर दिया. तभी से हिन्दू समाज में भंगी, चमार, मेहतर जैसे शब्द चलन में आयें.. और समय बीतने पर वामपंथी विचारधारा के लेखकों ने इसे निर्दोष, दीन-हीन ब्राह्मणों के माथे मढ़ दिया और बेचारे ब्राह्मणों ने भी मान लिया कि उन्होंने ही जातियाँ बनाई हैं और समाज में जातिवाद फ़ैलाया है. जबकी किसी भी हिन्दू धर्म ग्रन्थ में इसका जिक्र मात्र तक नही है कि जातिवाद का दोषी ब्राह्मण है. फ़िर किस आधार पर ब्राह्मण को जातिवाद का जनक बताया जाता है..??
परन्तु जब मुगल बादशाहों नें हिन्दुस्तान की धरती पर कब्जा जमाया तो मुसलमान धर्म न स्वीकार करने वालों को, बादशाह रोज-रोज अपमानित करने के लिये उनसे अपना, अपनी हजारों बेगमों, दरबारियों, सेनापतियों और अन्य प्रभावशाली रिश्तेदारों के घर का मैला उठवाना शुरु कर दिया. तभी से हिन्दू समाज में भंगी, चमार, मेहतर जैसे शब्द चलन में आयें.. और समय बीतने पर वामपंथी विचारधारा के लेखकों ने इसे निर्दोष, दीन-हीन ब्राह्मणों के माथे मढ़ दिया और बेचारे ब्राह्मणों ने भी मान लिया कि उन्होंने ही जातियाँ बनाई हैं और समाज में जातिवाद फ़ैलाया है. जबकी किसी भी हिन्दू धर्म ग्रन्थ में इसका जिक्र मात्र तक नही है कि जातिवाद का दोषी ब्राह्मण है. फ़िर किस आधार पर ब्राह्मण को जातिवाद का जनक बताया जाता है..??
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